my positive point for my life is.....To be hopeful in bad times is not just foolishly romantic. It
Sunday, December 30, 2012
हम अधूरे हैं ..................
एक खूबसूरत हूर की कोहिनूर हो तुम .....
जिसने हमें एक बहन दिया ......
जिसने हमें माँ दिया ......
जिसने हमें दादी माँ दी........
जिसने हमें एक दीदी दिया ....
हाँ वो एक आभागी लड़की हैं!!!
एक खूबसूरत आहसास हो तुम.....
जिसने हमें प्यार करना सिखाया ....
प्यार क्या होता हैं उसीने बताया ...
दर्द का जिसने आहसास दिलाया ...
हमने उसे माँ कहकर पुकारा ......
हां वो एक आभागी लड़की हैं!!!!
एक संसार हो तुम......
जब भी सोचा रह जाऊंगा तुम्हारे बिना .....
सो न सका साडी रात ......
जिसने हमें सोना सिखाया ...
कभी लोरियां गा कर तो कभी माथे चूम कर....
हाँ वो एक आभागी लड़की हैं!!!!
एक माँ हो तुम .....
भगवान् से भी उपर हैं जिसका कद ...
जिसने हमें सेवा करना सिखाया....
हर रात जो हमारे मल-मूत्र पर सोती रही हो....
जिसने हमें सीने से अमृत रस पिलाया हो.....
जिसने हमें दुनिया दिखाई हो.......
हाँ वो एक आभागी लड़की हैं!!!!!
एक सहनशील बहन हो तुम........
जिसने हमें दुआ करना सिखाया हो....
हर गलती को जिसने हस कर माफ़ किया हो....
वो हमारी प्यारी दीदी हैं.....
हाँ वो एक आभागी लड़की हैं.!!!
एक आर्धन्गनी हो तुम....
जो हमारी शाक्ति हैं......
जिसने हर कदम पर हमारा साथ दिया हो.....
जिसने हमारी हर गलती को बादलो की तरह ढक दिया हो.....
जिसकी पागल निगाहे हमेशा हमारी राह देख रही हो.....
हाँ वो एक आभागी लड़की हैं!!!!!
संगीतकार की संगीत हो तुम....
कवी की कविता हो तुम.....
दिलो की धड़कन हो तुम....
प्रेम की प्रेमिका हो तुम.....
किसान की धरती हो तुम.....
देवो की देवी हो तुम.....
तुम ही काली और दुर्गा हो तुम ...
हाँ वो एक आभागी लड़की हो तुम
!!!
तू जो नहीं हैं तो कुछ भी नहीं हैं........
ये माना की मैं सिर्फ जवां हैं हंसी हैं....
आँखों में तेरी सूरत बसी हैं.....
तेरी तरह ही तेरा गम हंसी हैं......
समझ में न आये ये क्या मान्झरा हैं ....
क्यों हर वक़्त सिने में कोई कमी सी हैं...
तू जो नहीं हैं तो कुछ भी नहीं हैं........
तू जो नहीं हैं तो कुछ भी नहीं हैं........
तू जो नहीं हैं तो कुछ भी नहीं हैं........
****** हमारी नम गमगीन आंखो से आपको आखिरी सलाम ********
ज़िन्दगी में फिर मिलेंगे हम कहीं
देख कर नज़रे न चुरा लेना ,
तुझे देखा है कहीं
बस इतना कह के गले लगा लेना !!!
Save Water Water is life
Wednesday, December 19, 2012
दादी माँ का प्यार............
ये कहानी हमारी दादी जी सुनाया करती थी उनका कहना था की ये कोई हिंदी के बहुत ही अच्छे लेखक का लिखा हुआ हैं......नाम मुझे पता नहीं हैं लेकिन मै आपलोग के साथ इसे शेयर करना चाहता हूँ............
एक १२ साल का लड़का था उसके माता पिता बचपन में ही चल बसे थे! दादी ही उसे पाल पोस कर बड़ा की थी ! दादा जी को उसके पिता जी ने भी नहीं देखा था ! गरीबी का वो आलम था जिसको सुनाना बहुत कठिन सा लग रहा हैं लड़का का नाम हामिद था दादी दुसरे के खेतो में काम करके अपना खाना पीना किसी तरह चला रही थी, हामिद भी कभी कभी उनके साथ जाया करता था , गाँव के पाठशाला में उसकी दादी ने नाम लिखा दिया की कुछ समझदार हो जायेगा समय के साथ - साथ सब कुछ जैसे तैसे चल रहा था , कुछ दिनों के बाद ही ईद का त्यौहार आने वाली थी , हामिद के सभी दोस्त नए नए कपरे पहन के आया करते थे तो कुछ रोज कुछ न कुछ नयी चीजो को खरीदने का बात किया करते थे , हामिद भी बहुत सोचता था कास उसके भी माता पिता जिन्दा होते ??
आखिर वो दिन आ ही गया जब सभी ईदगाह जा रहे थे वह ईद का मेला भी लगा था सभी बचे नए नए कपरे पहन कर जा रहे थे , हामिद भी नयी पुराणी कपरे को पहन कर जा रहा था अपने दोस्तों के साथ , जाने से पहले उसके बूढी दादी ने ४ रूपये दिए थे की कुछ मेला खा लेना और अपने लिए कोई खिलौना खरीद लेना ,लेकिन हामिद के मन में कुछ और ही चल रहा था वो अपने दादी को गर्म तवे पर रोटी बनाते देखा था हमेशा रोटी पलटने के समय दादी का हाथ जल जाया करता था ! ईदगाह पहुचने के बाद सभी दोस्तों ने खिलौना ख़रीदा तो किसी ने मीठी मीठी रसगुल्ले ख़रीदे सभी ने हामिद से पूछा हामिद तू क्या लेगा .....हामिद थोरा सोचा और बोला मै तो अपने दादी के लिए चिमटा (रोटी को पलटने वाली लोहे और टिन से बनी होती हैं) खरीदूंगा , सभी दोस्तों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा सब वही उसे कहने लगे दोस्त तू मेरा मिठाई खा लेना, तो किसी ने उसे अपना खिलौना देनी चाही , लेकिन हामिद ने सबको मना कर दिया !!
हामिद उस चिमटे के साथ मेला घूम कर वापस आया तो उसके दादी ने पूछा बीटा तूने क्या खाया और किस झूले पर झुलना झूले हो .हामिद ने धीरे से अपने हाथ से दादी के हाथ पकरकर अपना चिमटा उनके हाथ में थमा दिया , चिमटा देखते ही दादी के आँखों में आशु का नदिया बह चली रोके भी नहीं रुक रही थी , हामिद ने कहा दादी रस्गुले तो एक दिन और एक घंटे ही मिठास का आहसास देंगे लेकिन आपका हाथ जो रोज रोटी बनाने में जलता हैं वो तो रोज ही दर्द देते हैं .......
उसकी दादी ने उपर आसमान में देखा और कहा हे भगवान् अपने बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं और हमें कभी पता भी नहीं चलता हैं.........माँ के लिए तो बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं.......
Tuesday, December 18, 2012
कहा गया वो डर.......भय,
बात उस समय की हैं (१९९३..) जब हम सब बच्चे थे ! हमारा पूरा परिवार एक साथ झारखण्ड प्रान्त के बोकारो महानगर के चास तारा नगर में रहा करते थे ! वह मौसम भी सुहाना सुखद भरा था ! तारा नगर भी बहुत अजीब सा था वहा लोगो के बीच एक अजीब सा दोस्ताना सम्बन्ध था !उस समय एक नगर में ४-५ समूह हुआ करता था एक समूह जो १०-१२ साल के बच्चो का था ,महिलाये भी अलग समूह में रहा करती थी , सबसे अधिक संखया में २०-३० साल वाले लोग हुआ करते थे !
रात आज भी अँधेरी होती हैं उन दिनों में भी हुआ करती थी , बिजली की समस्या आज भी हैं कल भी था ! हमारे घर में एक आँगन हुआ करता था वही पर एक हैंडपंप (चापाकल ) भी था , कभी कभी रात में उस जगह जाने पर भय सा लगता था , मुझे आज भी याद हैं...उस थोरी सी भय के कारण मै हिंदी गाना गा कर दूर किया करता था ....जितना जोर से गाते थे तो लगता था की ये भूत नहीं पकरेगा...कभी कभी तो स्टील से बनी हुई गिलास को laudspeaker की तरह मुह में डाल जोर जोर से गाना गाते थे ( हिंदी मूवी तेजाब ...एक दो तीन ,चार ), ऐसा लगता था जैसे मैने भूत पर जीत हासिल कर लिया हो ! लेकिन कभी नहीं सोचा की डर सिर्फ जाते समय ही क्यों लगता था ?? ठीक जब हम उसी जगह से वापस आ रहे होते थे तो डर नहीं लगता था? ? जबकि दूरी आने जाने में बराबर था , अंधेरे भी बराबर थी? कयोंकि हम उस अँधेरे से अनजान सा थे,आज भी जब हम कोई नई मंजिल तय करना चाहते हैं तो ये वही छोटा सा डर हमें और हमारी मंजिल का रुकावट बन जाता हैं..हम सफल होंगे या नहीं ???....सो अपने मंजिल को देखिये डरिये मत और एक बार फिर वही बचपन वाली गाना गुण गुना लीजिये ....एक दो तीन चार ....हज़ार बार भी कोसिस करना परे करूँगा, पर हे नूर मेरे सपनो की हूर मै तुझे पा कर ही रहूँगा.......!!! आप सब कैसे दूर करते थे अपना बचपन का वो डर ........और क्यों लौटेते समय डर नहीं लगता था?????
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